"अनामदास का पोथा" (हजारीप्रसाद द्विवेदी) और "अग्नि और बरखा" (गिरीश कर्नाड) के बीच कई गहरे विषयगत संबंध (thematic kinships) हैं:
- उपनिषदिक और पौराणिक आधार: दोनों कृतियाँ प्राचीन भारतीय साहित्य से प्रेरित हैं। "अनामदास का पोथा" मुख्य रूप से छांदोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद के परिवेश पर आधारित है, जबकि "अग्नि और बरखा" महाभारत के 'वन पर्व' की 'रैभ्य और यवक्री' की कथा पर आधारित है।
- ज्ञान बनाम अनुभव की खोज: दोनों रचनाओं में ज्ञान की प्रकृति पर विमर्श है। 'अनामदास का पोथा' में रैक्व मुनि के माध्यम से दिखाया गया है कि केवल किताबी या एकांत का ज्ञान पर्याप्त नहीं है; जीवन का सत्य मानवीय संबंधों में है। इसी तरह, 'अग्नि और बरखा' में यवक्री की कठोर तपस्या और यांत्रिक ज्ञान, अरवावसु की लोक-कला और मानवीय संवेदना के सामने फीकी पड़ जाती है।
- प्रकृति और मानवीय अस्तित्व: दोनों कृतियों में प्रकृति (अग्नि, वर्षा, वन) केवल पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि मानवीय नियति का हिस्सा है। 'पोथा' में प्रकृति चेतना का विस्तार है, तो कर्नाड के नाटक में 'अग्नि' प्रतिशोध और 'बरखा' शुद्धि व क्षमा का प्रतीक है।
- अभिजात्य बनाम लोक तत्व: द्विवेदी जी ने अपने उपन्यास में उपनिषदिक ऋषियों को मानवीय धरातल पर उतारा है। वहीं, कर्नाड ने 'अग्नि और बरखा' में वैदिक कर्मकांडों की जटिलता के बीच लोक-रंगमंच (Theater) और प्रेम जैसे सहज मानवीय भावों को प्राथमिकता दी है।
- नैतिक द्वंद्व और शुद्धि: दोनों ही कृतियाँ आत्म-साक्षात्कार (Self-realization) की प्रक्रिया को दर्शाती हैं, जहाँ नायक अपने अहंकार को त्याग कर एक उच्चतर मानवीय सत्य की ओर बढ़ता है।
यदि आप इन रचनाओं को पढ़ना चाहते हैं, तो आप "अनामदास का पोथा" को Amazon पर देख सकते हैं और गिरीश कर्नाड के नाटकों का संग्रह Oxford University Press के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
No comments:
Post a Comment